जिसे जी कर लिखा हो वो छन्द कैसे हो
आड़े टेढ़े रास्ते पर चल कर सिर्फ मकरन्द कैसे हो
जिन्दगी फूलों सी भी हो सकती है
मगर काँटों की चुभन मन्द कैसे हो
अशआर पकड़ते हैं जब जब कलम
अहसास की कहन चन्द कैसे हो
दिया बुझे या जले दिले-नादाँ का
राख तले शोलों की अगन बन्द कैसे हो
गाने लगते हैं सुर में जब जब दर्द-औ-गम
इक सदा गूँजती है मगर दिल बुलन्द कैसे हो
फलसफे जिन्दगी के दिनों-दिन आते हैं समझ
छाले क़दमों तले जुबाँ पे मखमली पैबन्द कैसे हो
Satpal Khayaal at Rekhta Mushaira
2 दिन पहले